केशव सुमन सिंह | टीम ट्रिकीस्क्राइब: काला दिवस या विजय दिवस! 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया। इसे कोई “काला दिवस” कहता है, तो कोई “विजय दिवस”। लेकिन जो ढांचा गिरा, उसमें “ऊपर वाले की मर्जी” थी। क्यों? यह जानने के लिए आइए एक यात्रा पर चलते हैं।
श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को कवर करने के लिए मेरी अयोध्या यात्रा दस दिनों की थी। इन दिनों में मैंने अयोध्या की गलियों में घूमकर, सैकड़ों लोगों से बातचीत की। चाय की दुकानों पर चर्चा की, साधारण लोगों से अनायास संवाद किया। पत्रकारिता के इस “साधुकड़ी” अंदाज ने मुझे वह बातें जानने दीं, जो किसी अन्य माध्यम से संभव नहीं थीं।
“विहार” का महत्व और पांडे जी से मुलाकात
हमारे शास्त्रों में “विहार” को श्रेष्ठ माना गया है। अयोध्या की गलियों में भटकते हुए मेरी मुलाकात पांडे जी से हुई, जो राम मंदिर से करीब 5 किमी दूर एक चाय की दुकान पर बैठे थे। उन्होंने कहा कि गुंबद गिराने वाले कारसेवक भगवान राम की वानर सेना थे। पांडे जी ने मुझे अपनी जवानी याद दिला दी। ठंड के मौसम में कई चाय के बाद उन्होंने अपनी कहानी सुनानी शुरू की।
हरि इच्छा और हनुमान की शक्ति
पांडे जी की मान्यता थी कि विवादित ढांचा गिराना कारसेवकों के बस की बात नहीं थी। यह सब “हरि इच्छा” से हुआ। उन्होंने कहा, “गुंबद पर चढ़ने वाले हर कारसेवक में हनुमान जी की शक्ति थी।”
पांडे जी का कहना था कि बिना रस्सी या सीढ़ी के उस गोल और ऊंचे गुंबद पर चढ़ना असंभव था। उन्होंने इसे “दुर्गम काज” बताया, जो केवल “हनुमान जी” ही कर सकते थे। उन्होंने चुनौती दी कि आज भी किसी से ऐसा करवाकर दिखा दें, तो भी संभव नहीं होगा।
कारसेवकों का बलिदान और जोश
पांडे जी ने बताया कि कारसेवक घर छोड़कर सर पर कफन बांधकर निकले थे। उनके परिवार वालों ने उन्हें तिलक लगाकर विदा किया था। बहनों ने रक्षा सूत्र बांधा और हनुमान जी से भाई की सलामती की प्रार्थना की। लेकिन उन्हें पता था कि उनके भाई लौटकर नहीं भी आ सकते हैं।
कारसेवक पुलिस की नाकाबंदी को पार करते हुए खेतों और पगडंडियों से राम जन्मभूमि की ओर बढ़े। पुलिस ने 30,000 जवान तैनात किए थे, लेकिन कारसेवकों का जोश नहीं थमा।
गुंबद गिराने की “अलौकिक” घटना
पांडे जी ने बताया कि गुंबद बहुत मजबूत था। उसे तोड़ने के लिए घन, गैंती और खंती जैसे औजार ही थे। इसके बावजूद गुंबद पलभर में गिरा और मलबा भी साफ हो गया। उनका कहना था कि यह “हनुमान जी” की शक्ति के बिना संभव नहीं था।
उन्होंने यह भी कहा कि आज अगर वही गुंबद गिराना हो, तो जेसीबी मशीनें लगानी पड़ेंगी।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण और हनुमान चालीसा की गूंज
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भले ही इस घटना को समझाना मुश्किल हो, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसे “हरि इच्छा” और “हनुमान जी” का कार्य माना गया।
पांडे जी की कहानी सुनते हुए हनुमान चालीसा की पंक्तियां जैसे जीवंत हो उठीं—
“दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।”
इस कहानी में आध्यात्म और इतिहास का अद्भुत संगम दिखता है।
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