अंकित सिंह | टीम ट्रिकीस्क्राइब: बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य में करीब 35 प्रतिशत किसान परिवार को बैंकों से लोन नहीं मिलता है. बिहार नाबार्ड के क्षेत्रीय महाप्रबंधक ने कहा बैंकों से किसानों को सही समय पर कर्ज मिलेगा. तभी बदल पाएगी किसानों की तस्वीर.
बिहार की समृद्धि का मार्ग कृषि,पशुपालन से होकर ही गुजरता है. हालांकि इस क्षेत्र में काम करने वाले किसानों और उद्यमियों के लिए बैंक से कर्ज मिलना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. कृषि और पशुपालन विभाग के अधिकारी भले ही बैंक को कर्ज देने के लिए आदेश देते रहते हैं. लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े लोगों को बैंक से कर्ज मिलना न के बराबार है. वहीं इस सेक्टर के उद्यमियों, किसानों को आसानी से ऋण मिले. इसको लेकर नाबार्ड बिहार द्वारा पटना के ज्ञान भवन में 2025-26 को लेकर राज्य ऋण संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जहां राज्य में कृषि पशुपालन, मत्स्य पालन को लेकर बेहतर संभावनाओं को देखते हुए नाबार्ड बिहार के क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य महाप्रबंधक विनय कुमार सिन्हा कहते हैं कि अगर बैंकों द्वारा आसानी से ऋण मिले तो राज्य के कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों का ग्रोथ बहुत तेजी से होगा. जिसका सकारात्मक असर राज्य की अर्थव्यवस्था के मजबूती में देखा जा सकता है. हालांकि राज्य के 65 प्रतिशत ही लोगों को बैंक और एमएफआई के जरिए लोन मिल रहा है.जबकि देश में यह आंकड़े 75 प्रतिशत के आसपास है.
बता दें कि नाबार्ड द्वारा बिहार को लेकर स्टेट फोकस पेपर2025-26 का विमोचन उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के द्वारा कराया गया. जिसमें राज्य के सभी जिलों के लिए नाबार्ड द्वारा प्राथमिकता वाले क्षेत्र के लिए 2,64,964 करोड़ रुपये की ऋण क्षमता का किया आकलन किया गया. जिसमें कृषि क्षेत्र के लिए ₹1,12,642 करोड़ की ऋण क्षमता का आकलन किया गया है, जिसमें डेयरी के लिए ₹9,203 करोड़, कृषि मशीनीकरण के लिए ₹6,163 करोड़, जल संसाधन के लिए ₹4,518 करोड़, मुर्गीपालन के लिए ₹4,375 करोड़, भंडारण सुविधाओं के लिए ₹7,737 करोड़ और कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण के लिए ₹6,609 करोड़ शामिल हैं। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र के अंतर्गत ₹1,19,579 करोड़ की ऋण क्षमता आंकी गई है.यह संभावित अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक के प्राथमिकता क्षेत्र आधारित दिशा-निर्देशों, केन्द्र एवं राज्य सरकार की नीतियों तथा टिकाऊ कृषि एवं ग्रामीण विकास की नीतियों को ध्यान में रखकर लगाया गया है.
बिहार में 35 प्रतिशत किसानों को बैंक से नहीं मिला कर्ज
नाबार्ड बिहार के क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य महाप्रबंधक ने नाफीस के 2021-22 के रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि बिहार में 58 प्रतिशत कृषि आधारित परिवार है. जिसमें 65 प्रतिशत लोगों ने किसी न किसी तरह से इंस्टीट्यूशनल एजेंसी से लोन लिया है. इसका राष्ट्रीय औसत 75 प्रतिशत है. यानी बिहार में 35 प्रतिशत ऐसे परिवार है,जो आज भी अपने रिश्तेदारों सहित अन्य माध्यमों से कर्ज ले रहे हैं. वहीं 65 प्रतिशत इंस्टीट्यूशनल एजेंसीयों में से माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूट(एम एफ आई) द्वारा 28 से 30 प्रतिशत के हाई रेट पर ऋण दिया जा रहा है. इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए फॉर्मल बैंकिंग चेन के थ्रू के जरिए काम करने की जरूरत है.
राज्य के एग्रीकल्चर क्षेत्र में बैंकों का योगदान न के बराबर
नाबार्ड बिहार क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य महाप्रबंधक विनय कुमार सिन्हा ने कहा बिहार में करीब एक करोड़ 61 लाख लोगों के पास भूमि है. लेकिन पिछले साल जहां किसान क्रेडिट कार्ड करीब 13 लाख लोगों को मिला. इस साल के मध्य तक साढ़े पांच लोगों को अभी तक मिला है. जो काफी कम है. सूबे में हार्टिलचर के क्षेत्र में किसानों के लिए बैंकों का योगदान नहीं के बराबर है. इसके साथ ही कृषि,पशुपालन एवं मत्स्य के क्षेत्र में ब्रीड, फीड,कोल्ड चेन,दूध प्रोसेसिंग सहित अन्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य सभी जगह हो रहे है. लेकिन बिहार में बैंक फाइनेंस से जुड़ा कोई इस तरह का उदाहरण योगदान के रूप में नहीं देखने को मिला रहा है.
2025-26 के राज्य ऋण संगोष्ठी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि बिहार में हाल के दिनों में क्षेत्रवार और समग्र विकास देखा गया है, फिर भी तीव्र और केंद्रित विकास की आवश्यकता है. राज्य सरकार मक्का, मखाना, मत्स्य पालन और केला जैसी राज्य-विशिष्ट गतिविधियों पर जोर देगी, और बैंकों को ऋण नीतियों का समर्थन करके सरकार की पहलों का समर्थन करने के लिए कार्य योजनाएँ तैयार करनी होंगी.
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