टीम ट्रिकिस्क्राइब: पद्म विभूषण शारदा सिन्हा के छठ गीत सुनते ही लोगों के मन में छठ की भावना जाग उठती है। दीपावली के खत्म होते ही हर जगह शारदा सिन्हा के छठ गीत बजने लगते हैं, और आस्था की लहरों में लोग खो जाते हैं। भले ही शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ के बिना छठ की कल्पना भी नहीं की जा सकती। शारदा सिन्हा का निधन हुआ है, लेकिन छठ में वे हमेशा के लिए अमर रहेंगी। छठ का अर्थ ही शारदा सिन्हा रहेगा। उनके निधन की खबर पाते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की घोषणा कर दी।
“दुखवा मिटाईं छठी मैया…” से विदाई
“दुखवा मिटाईं छठी मैया, रउए असरा हमार…” इस नए गीत को अपनी आवाज देने वाली शारदा सिन्हा ने अस्पताल के बिस्तर से इस संसार को अलविदा कहा। उनके करोड़ों प्रशंसकों की छठी माई से की गई प्रार्थनाएं पूरी नहीं हो सकीं, लेकिन उनकी आवाज और उनकी आस्था लोगों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगी। छठी माई पर आधारित उनका आखिरी एल्बम, जिसे अस्पताल से ही रिलीज़ किया गया, सच में अद्वितीय है।
छठ पूजा की शुरुआत, शारदा सिन्हा के गीतों से
लोक आस्था के पर्व छठ की शुरुआत ही शारदा सिन्हा के मधुर गीतों से होती है। बिहार कोकिला की आवाज़ में “शट गुनिया हो दिना नाथ हे घुमई छ सरे सात…” और “केलवा के पतवा पर उगेलन सूरजमल…” सुनते ही समझिए कि छठ का पर्व आ गया है। शारदा सिन्हा का संगीत इस महापर्व की पहचान बन चुका है।
सांस्कृतिक धरोहर की संरक्षक: शारदा सिन्हा का सफर
1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गाँव में जन्मीं शारदा सिन्हा को पद्मश्री और पद्म विभूषण जैसे सम्मान मिले। उनका प्रारंभिक जीवन मिथिला की सांस्कृतिक परिवेश में गुजरा, और ससुराल बेगूसराय के सिहमा गाँव में होने के कारण वे छोटी उम्र से ही लोकगीतों की समृद्ध परंपराओं से परिचित हो गईं। मैथिली लोकगीतों से उनकी संगीत यात्रा शुरू हुई, जिसने उन्हें हिंदी फिल्मों तक पहुंचा दिया।
मैथिली से भोजपुरी तक, शारदा सिन्हा का प्रभाव
शारदा सिन्हा की आवाज़ मैथिली, भोजपुरी, मगही, और हिंदी में भी उतनी ही लोकप्रिय रही। विद्यापति पर्व और प्रयाग संगीत समिति ने उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए प्रमुख मंच प्रदान किया। इलाहाबाद के बसंत महोत्सव में उनकी कलात्मकता ने श्रोताओं का दिल जीत लिया, और वसंत के गीतों में उनकी आवाज़ का जादू बिखरा।
छठ पूजा में शारदा सिन्हा का अमूल्य योगदान
शारदा सिन्हा की संगीत यात्रा में छठ पूजा का विशेष स्थान रहा है। इस महापर्व के लिए उनके गीत “केलवा के पात पर उगलन सूरजमल,” “सुना छठी माई” जैसे हजारों गीतों ने छठ पूजा में नई जान फूंक दी। उनके गीतों ने इस परंपरा को एक ऐसी धरोहर बना दिया है जो पीढ़ियों को जोड़ती है।
छठ महापर्व की पहचान बने शारदा सिन्हा के गीत
शारदा सिन्हा के गीत, जैसे “बलमुआ कइसे तेजब” और “कांच ही बांस के बहंगिया,” घर-घर में गूंजते हैं। उनकी आवाज़ की सीमा बिहार तक ही नहीं, विदेशों तक भी है, जहां लोग उनके गीतों को सुनकर छठ पूजा में शामिल होने के लिए आते हैं। उनके गीतों ने छठ को एक वैश्विक पहचान दी।
सम्मानों की झड़ी: संगीत में शारदा सिन्हा का योगदान
शारदा सिन्हा को 2015 में बिहार सरकार का पुरस्कार, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय अहिल्या देवी पुरस्कार, 1991 में पद्मश्री, और 2018 में पद्मभूषण मिला। छठ गीतों के अलावा, उनकी आवाज़ बिहार की शादियों में भी उतनी ही लोकप्रिय रही है।
पहली रिकार्डिंग से लोकप्रियता का सफर
शारदा सिन्हा ने पहली बार 1978 में “उगअ हो सूरज देव भइल अरघ केर बेर…” रिकॉर्ड किया, जिसे खूब पसंद किया गया। राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “हम आपके हैं कौन” का उनका गीत “कहे तोहसे सजना ये तोहरी सजानियां…” भी अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
लोक पर गहरी छाप
बिहार कोकिला शारदा सिन्हा ने न केवल मैथिली और भोजपुरी धुनों को लोकप्रिय बनाया, बल्कि भारतीय लोक और शास्त्रीय संगीत की एक अमूल्य धरोहर बनकर उभरीं। अपने छठ गीतों के माध्यम से उन्होंने आस्था की एक ऐसी लहर प्रवाहित की, जो सुनने वालों को आस्तिक बना देती है।
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