टीम ट्रिकीस्क्राइब: साइबर धोखाधड़ी राज्य में सबसे तेजी से बढ़ने वाला अपराध बनता जा रहा है। इसके नित्य नए स्वरूप सामने आ रहे हैं। इन दिनों सूबे में डिजिटल अरेस्ट के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। जनवरी से अब तक 320 मामले सामने आ चुके हैं। इसमें साढ़े 10 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी लोगों से कर ली गई है। इस राशि में महज डेढ़ करोड़ रुपये को ही होल्ड कराकर साइबर ठगों के चंगुल से बचाया जा चुका है। इसे पीड़ित लोगों को लौटाने की प्रक्रिया जल्द शुरू कर दी जाएगी। यह पहला मौका है, जब साइबर फ्रॉड के मामलों में डिजिटल अरेस्ट से जुड़े अपराध की संख्या सबसे अधिक सामने आई है।
राज्य के सभी 40 साइबर थानों में इस वर्ष अब तक साइबर अपराध से संबंधित 9 हजार से अधिक मामले दर्ज किये जा चुके हैं। इसमें एटीएम के माध्यम, फोन करके पासवर्ड पूछना समेत अन्य तरीके से ठगी के मामले सबसे अधिक हैं। परंतु डिजिटल अरेस्ट के मामले पिछले वर्षों की तुलना में इस बार 8 से 10 गुणा की रफ्तार से बढ़े हैं।
डिजिटल अरेस्ट के तेजी से बढ़ते मामले की रोकथाम के लिए व्यापक जागरूकता अभियान के अलावा अन्य उपाए किए जा रहे हैं। ऐसे मामलों की जांच के लिए बड़े स्तर पर पहल की जा रही है। अधिकांश अपराधी राज्य के बाहर के होते हैं।
– मानवजीत सिंह ढिल्लो (डीआईजी, ईओयू)
करोड़ों की ठगी की गई
पटना स्थित साइबर थाने में पिछले दो महीने के दौरान इससे जुड़े 4 से 5 मामले दर्ज हो चुके हैं। इसमें बड़ी ठगी के मामले शामिल हैं। कुछ दिनों पहले एक सेवानिवृत महिला प्रोफेसर से करीब 3 करोड़ रुपये की ठगी की गई है। एसबीआई के एक अधिकारी से 45 लाख रुपये, एक अन्य सेवानिवृत प्रोफेसर से 13 लाख रुपये, गया के एक डॉक्टर से 4 करोड़ रुपये की ठगी डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से कर ली गई है। इन सभी मामलों को संबंधित साइबर थाने में दर्ज करके जांच चल रही है। अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
देर से सूचना सबसे बड़ी बाधा
डिजिट अरेस्ट में फंसे लोगों की राशि डूबने के बाद होल्ड कराकर लौटाने की दर सबसे कम होने की मुख्य वजह इसकी सूचना देर से देना है। इसकी गिरफ्त में आने वाले लोग काफी देर बाद असलियत से वाकिफ हो पाते हैं, तब तक साइबर ठग राशि को कई दूसरे बैंकों, फर्जी कंपनियों के खातों समेत विभिन्न स्थानों पर रूट कर देते हैं।
चलाया जा रहा खास जगरूकता अभियान
ईओयू (आर्थिक अपराध इकाई) के स्तर से सभी साइबर थानों में डिजिटल अरेस्ट को लेकर खास जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। ताकि लोग इसके चंगुल में फंसने से बच सके। यह पता होना चाहिए कि कोई भी जांच एजेंसी या पुलिस अधिकारी कभी भी वॉयस या वीडियो कॉल पर बयान नहीं दर्ज करते हैं। कोई एजेंसी या पुलिस स्काइप, व्हाट्स एप कॉल जैसे डिजिटल या सोशल प्लेटफॉर्म का उपयोग संपर्क करने के लिए नहीं करती है। कभी भी पुलिस की तरफ से कॉल के दौरान अन्य लोगों से बातचीत के लिए नहीं रोका जाता है। ऐसी किसी स्थिति में तुरंत बिना किसी घबराहट के 1930 पर कॉल करके सूचना दें। किसी अंजान नंबर का कॉल नहीं उठाएं और किसी मैसेज का जवाब दें।
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